नई दिल्ली:
देश का पोल्ट्री उद्योग, जिसकी कीमत वर्तमान में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक आंकी जाती है, आने वाले वर्षों में मक्का (Maize) और सोयाबीन मील (Soybean Meal) जैसी प्रमुख फ़ीड सामग्रियों की गंभीर कमी का सामना कर सकता है। उद्योग के प्रतिनिधियों ने सरकार से मांग की है कि आयात को उदार बनाकर और जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) सोयाबीन मील व जीएम मक्का के आयात की अनुमति देकर इन आवश्यक सामग्रियों की उपलब्धता और दामों की स्थिरता सुनिश्चित की जाए।
ग्रामीण भारत में पशुपालन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है, जो कृषि सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में महत्वपूर्ण योगदान देती है। यद्यपि पशुपालन क्षेत्र का आकार फसल क्षेत्र की तुलना में आधा है, फिर भी इसने तेज़ी से वृद्धि दर्ज की है — विशेषकर पोल्ट्री सेक्टर के तेज़ विकास के कारण।
देश का पोल्ट्री क्षेत्र, जिसकी मौजूदा कीमत 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, ने पिछले दशक में उल्लेखनीय प्रगति की है। चिकन मीट का उत्पादन प्रतिवर्ष 8% की दर से बढ़ा है। बढ़ती जनसंख्या, आय में वृद्धि और बदलते उपभोग पैटर्न के कारण अंडे और चिकन मीट की मांग लगातार बढ़ रही है। उद्योग ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए एकीकृत खेती (Integrated Farming), कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, और वैल्यू चेन इंटीग्रेशन जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाया है।
हालांकि, चुनौतियाँ अभी भी बरकरार हैं। फीड की लागत, जो कुल उत्पादन लागत का 65 से 70% हिस्सा होती है, किसानों के लिए सबसे बड़ी चिंता है। वर्तमान में मक्का की मांग औद्योगिक उपयोग और एथेनॉल उत्पादन की ओर बढ़ रही है, जिसके चलते पोल्ट्री उद्योग को फीड के लिए मक्का की पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल पा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि “देश में मक्का और सोयाबीन उत्पादन की वर्तमान वृद्धि दर आने वाले समय में पोल्ट्री उद्योग की मांग पूरी करने के लिए अपर्याप्त होगी।” सरकार द्वारा मक्का आधारित एथेनॉल नीति को बढ़ावा देने से पोल्ट्री उद्योग के सामने कच्चे माल की कमी की समस्या और गहराने की संभावना है।
इसी को देखते हुए, उद्योग जगत ने सरकार से GM सोयाबीन मील और GM मक्का के आयात की अनुमति देने की मांग की है। पड़ोसी देशों — नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान — में पहले से ही इन उत्पादों के आयात की अनुमति है। भारतीय पोल्ट्री उद्योग को उम्मीद है कि आने वाले समय में भारत सरकार भी इसी दिशा में सकारात्मक कदम उठाएगी।
उद्योग प्रतिनिधियों ने बताया कि इस विषय पर पशुपालन एवं कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा जारी है, ताकि उद्योग को स्थिर और सस्ती फ़ीड आपूर्ति उपलब्ध कराई जा सके।
अंततः, भारत का पोल्ट्री उद्योग देश की प्रोटीन और पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभा रहा है। लेकिन इसकी सतत वृद्धि के लिए उचित दामों पर फ़ीड सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना अब भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
लेखक:ललित लांजेवार




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