नागपूर:
पोल्ट्री व्यवसाय को मुनाफे का धंदा माना जाता था, लेकिन पहले कोविड और फिर बर्ड फ्लू और अब सोयाबीन डो.ओ.सी के आसमान छू जाणे वाले दाम, इसी के कारण पोल्ट्री व्यवसाय पूरी तरह से डुबता नजर आ राहा है. इन सबके चलते पोल्ट्री फार्म के संचालकों को नुकसान हो रहा है। कोविड काल के बाद से उनकी चिंताये बढ़ गयी है।
DOC और मका के बढते किमतो ने फार्मर को चिंता मे दाल दिया हैं.अब पोल्ट्री फीड के दाम बढ़ने से एक बार फिर मुर्गी पालन से जुड़े लोगों की परेशानी बढ़ गई है।
पिछले कई सालो से लेयर, ब्रॉयलर, देशी ,मुर्गी का व्यवसाय करने वाले फार्मर २ हजार से ५० हजार मुर्गी कि फार्मिंग करते थे। लेकिन पोल्ट्रीफीड के दाम ४ गुना बढने के कारण २ से ३ हजार मुर्गी पालन कर रहे है।पिछले साल कोरोना की वजह से चलती फार्मिंग खतम हो गयी थी. ऊस वक्त फार्मरोको काफी नुकसान हुआ था।देश भर मे पोल्ट्रीफार्मरोनें दिल बडा कर के मुर्गी फोकट मे बाट दि थी। फिर जुलाई से फरवरी तक बाजार सही रहा। लेकिन फिर जनवरी के बाद से भारत में बर्ड फ्लू ने दस्तक दे दि, इससे नये से उबर रहा धंदा बर्बाद हो गया,रेट पूरी तरह से गिर गये।
भारत मे पोल्ट्री फीड बनाने वाली मशहूर पोल्ट्रीफीड कंपनी न्यूट्रीक्राफ्ट इंडिया प्रायव्हेट लिमिटेड कंपनीके महाराष्ट्र विदर्भ के मुख्य सिनिअर सेल्स ऑफिसर ललित लांजेवार बताते है कि सबसे जादा फीड बनाने मे मक्का और सोयाबीन का इस्तेमाल होता हैं।आज सोयाबीन DOC की कीमते आसमान छू जाणे से पोल्ट्री फीड भी महंगा हुआ है। पिछले साल इसी समय सोयामील की कीमत 30 रुपए किलो थी। जो इस समय लगभग 110 रुपए प्रति किलो हो गया है।
बिते १ महिनेमे सोया और मका के दाम इतने जल्दी चढ रहे है कि पोल्ट्री फीड बनाने वाले कंपनीयोको करोडो रुपयोका घाटा सहना पढ रहा है।रॉ मटेरिअल का भाव क्या हो सकता है उसका अनुमान न लगने के कारण खरेदी नही कर पा रहे है। बढती किमत हिसाब करणे का भी वक्त नहीं दे रही है।
बढतेफीड के दामोसे फार्मर भी कंगाल हो गया है. "इस समय हर जगह फीड के रेट बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। २ महिने पहले पोल्ट्रीफीड 1400 सौ रुपए में ५० किलो मिलता था, उसी बोरी की कीमत अब २५०० से २६०० रुपये हो गई है। जबकि बडी मुर्गीयो पे मुर्गी के रेट का जादा असर नहीं पड़ता। लेकिन उसके तुलना मे लागत ज्यादा बढ़ गयी है। अभी ब्रायलर चूजों के दाम २६ से २८ रुपए के लगभग हैं। पहले जो मुर्गे को तैयार करने में ७५ से ८० रुपए लगते थे, अब उसी की लागत ९५ से १०० रुपया से जादा प्रति किलो का खर्च आ रहा है। जबकि उतना दाम सही नहीं मिल रहा है।". 

स्टॉक करके कालाबाजार होने कि संभावना
फीड कंपनी के महाराष्ट्र विदर्भ के मुख्य सिनिअर सेल्स ऑफिसर ललित लांजेवार बताते है कि "पोल्ट्री फीड के दाम बढ़ने मे सोया या मका का जितना योगदान है उतनाही डिझेल के दाम बढनेसे ट्रांस्पोर्टेशन के भी दाम मे तेजी आ गयी है। २०१९ के बाद पोल्ट्री सेक्टर दिनो दिन डुबता जा रहा है। एक और स्वास्थ के लिये प्रोटीन जरुरी होता है, कोरोना के बाद बाजार मे चिकन कि किमत और डिमांड बढते देख हि पोल्ट्रीफीड मे लगणे वाली DOC कि किमत दिनो दिन बढते नजर आ रही है. तेलों की कीमत ने भोजन का जायका भी बिगाड़ दिया है। लोगों के लिए घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। पिछले एक साल में खाने वाले तेल की कीमतों में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। खाद्य तेल किमत बढनेसे उससे तयार होणे वाली doc का भी भाव बढना पक्का है। लेकिन जिस तरःसे हर रोज भाव बढ ऱहे है, यह एक कालबाजारी के कारण भी होणे कि संभावना उन्होने जताई है.
फीलहाल फीड कंपनी न्यूट्रीक्राफ्ट इंडिया प्रायव्हेट लिमिटेड सबसे सटीक दाम मे अच्छा फीड फार्मर को मुहय्या करा रही है. महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश,गुजरात और छत्तीसगड मे कंपनीने विश्वास संपादन करते हुए अपने कारोबार को काफी तेजी से बढाया है.पोल्ट्री फार्मर भी कंपनीका फीड पाने के लिये ऍडव्हान्स बुकिंग कर रहे है. ब्रॉयलर चिक्स बडा करणे के लिये कंपनीने अल्ट्रा पॉवर नामक फीड मार्केट मे उतारा है ।जो दुसरे किसी फीड को तोड नही है.इस फीड का डिमांड दीनोदीन बढते जा रहा है।
अगर सोयाबीन डीओसी या मके के रेट इसी तरह बढते है तो वो दिन पोल्ट्रीफार्मरोको देखना दूर नही जीस दिन उनकी सारी दुकाने बंद हो जायेगी। सरकार जीस तरह साखर(शुगर,शक्कर ) कारखानदारो के लिए कर्जमाफी सोचते है. या लागत कर्ज देते हुए कारखाना को शुरू करने की लिये प्रयास करते है ऐसी कोई सुविधा पोल्ट्री फार्मरोको सरकारने अभी तक मुहैया नही करा पाई है.
सरकार से मदत जरुरीएक तरफ सरकार कृषीपूरक व्यवसाय करने के लिए प्रोत्साहित करती है. लेकिन उसके उपर किसी का कंट्रोल न होने के कारण व्यवसाय मे कालाबाजारी का प्रमाण दिनोदीन बढ गया है। सरकारने इस व्यवसाय के लिए स्वतंत्र विभाग तयार करना चाहिये। जिस तरह गेहू,चावल,बाजरा के साथ अन्य कृषी से संबंधित फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है उसी तरह मछली,और मुर्गी के दाम निर्धारित होणा चाहिये,इस पर भी सरकारी नियंत्रण होणा आवश्यक हो गया है. नियंत्रण न होणे से प्रायव्हेट इंटिग्रेशन कंपनीया चिकन के दाम निर्धारित कर रही है.इसी के कारण फार्मरोको अपने मुर्गी का सही दाम नाही मिल प राहा है. इस सिस्टम को हटाकर,सरकार मांस न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है तो पोल्ट्री फार्मर काही राहत महसूस कर सकता है.
पोल्ट्रीफीड के लिये करे संपर्क:9175937925
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