अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर के मुताबिक सोयाबीन के दाम में 21 फीसदी की गिरावट जरूर आई है, लेकिन इसका दाम अब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से करीब 94 परसेंट ऊपर है. सोयाबीन का एमएसपी 3,880 रुपये प्रति क्विंटल हैं. इसलिए किसानों को घाटा नहीं है.
अगले महीने तक आ जाएगी फसल
दूसरी ओर, सोयाबीन की नई फसल अगले महीने तक मार्केट में आ जाएगी, इसलिए किसान ज्यादा चिंतित हैं कि जब उनकी फसल मार्केट में आने वाली है तब दूसरे देश से सोयामील इंपोर्ट करने उनके हितों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. दरअसल, सोयामील, सोयाबीन के बीजों से तैयार किए गए उत्पादों को कहते हैं. जिसका इस्तेमाल पोल्ट्री इंडस्ट्री में पशु आहार के रूप में किया जाता है. इसे सोयाबीन की खली भी कह सकते हैं.
कब लिया गया इंपोर्ट का फैसला
केंद्र सरकार ने 16 अगस्त को 12 लाख टन सोयामील इंपोर्ट की अनुमति दी थी. यह सोयामील जेनेटिकली मोडिफाइड (Genetically Modified) है. महाराष्ट्र सरकार ने इस इंपोर्ट को तुरंत रोकने की मांग की है. राज्य के कृषि मंत्री दादाजी भुसे ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर किसानों के हित में इंपोर्ट का फैसला बदलने की मांग की है. महाराष्ट्र के अलावा किसी भी राज्य ने इसका विरोध नहीं किया है.
मध्य प्रदेश है सबसे बड़ा उत्पादकप्रोटीन एवं तेल (Oil) की भरपूर मात्रा की वजह से दुनिया में खाद्य तेल एवं पौष्टिक आहारों के लिए सोयाबीन महत्वपूर्ण सोर्स है. देश में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक मध्य प्रदेश है. लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में महाराष्ट्र सबसे आगे है. महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि सोयाबीन भारत में महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जिसे खरीफ सीजन के दौरान 120 लाख हेक्टेयर में बोया जाता है.
देश में 1 करोड़ से ज्यादा किसान सोयाबीन की खेती (Soybean farming) करते हैं. अब उनकी फसल तैयार होने वाली है. इस बीच केंद्र सरकार ने 12 लाख मीट्रिक टन सोयामील इंपोर्ट की अनुमति दे दी. इस फैसले से सोयाबीन की कीमतों पर असर पड़ेगा. उधर, मध्य प्रदेश के किसान नेता राहुल राज ने भी किसान हित में सोयामील इंपोर्ट के फैसले को वापस लेने की मांग की है, ताकि किसानों को नुकसान न हो. उनका कहना है कि सोयाबीन के लगातार गिरते दाम से किसान परेशान हैं.सोर्स tv 9
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