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देसी मुर्गी से दो गुना अंडे देने वाली मुर्गी की प्रजाति विकसित, और भी हैं कई लाभ

बरेली/अमर उजाला कि रिपोर्ट:
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआई) ने देसी मुुर्गी से दो गुना से ज्यादा अंडा देने वाली कैरी श्यामा नाम की मुर्गी की नई प्रजाति विकसित करने में सफलता हासिल की है। सीएआरआई के वैज्ञानिक लंबे समय से मुर्गी की इस उन्नत प्रजाति को तैयार करने में लगे हुए थे। इस प्रजाति की मुर्गी की खासियत यह है कि इसका वजन देसी मुर्गी से ज्यादा होने के कारण पशुपालकों के लिए ये मांस के लिए भी काफी फायदेमंद हैं।
सीएआरआई के वैज्ञानिकों ने कड़कनाथ और कैरी रेड के माध्यम से कैरी श्यामा मुर्गी को विकसित किया है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए कड़कनाथ प्रजाति के नर और कैरी रेड की मादा का इस्तेमाल किया है। कड़कनाथ को संस्थान ने करीब 35 साल पहले मध्यप्रदेश से लाए अंडों की मदद से विकसित किया था, जबकि कैरी रेड मुर्गी की विदेशी प्रजाति है। वैज्ञानिकों का कहना है कि देसी मुर्गी जहां सालभर में केवल 60 से 80 तक अंडे देती है, जबकि कैरी श्यामा सालभर में 170-190 तक अंडे दे सकती है। इसके अलावा देसी मुर्गी का औसतन वजन जहां एक से सवा किलो तक होता है, जबकि कैरी श्यामा मुर्गी का वजन डेढ़ से दो किलो तक होने से उससे ज्यादा मांस मिल सकता है। इसका मांस काले रंग का होता है और अंडों का वजह भी देसी मुर्गी के मुकाबले ज्यादा होता है। इससे मुर्गीपालकों को ज्यादा फायदा मिल सकता है।
पोल्ट्री फार्म की जरूरत नहीं, खुद कर सकती अपना बचाव
सीएआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि कैरी श्यामा मुर्गी का नाम कैरी संस्थान के नाम से पड़ा है और श्यामा का मतलब ये काले रंग की है। काला रंग होने की वजह से झाड़ियों में छुपकर से जानवरों से अपना बचाव कर सकती है। साथ ही इस मुर्गी को पालने के लिए पोल्ट्री फार्म की जरूरत नहीं। घर के आसपास रहते हुए भी इसको पाला जा सकता है। बचा खाना, घास-फूस और कुछ दाना खाकर इस मुर्गी का पालन किया जा सकता है।
20 हफ्ते में तैयार होकर अंडा देना शुरू देती है मुर्गी
वैज्ञानिकों का कहना है कि कैरी श्यामा के चूजे अधिकतम 20 हफ्ते में तैयार होकर अंडे देना शुरू कर देते हैं। इस प्रजाति के लिए ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है। देसी होने के कारण बाजार में इसके अंडे की काफी मांग है।
25 रुपये का चूजा लेकर 1200 रुपये तक बेची मुर्गी
सीएआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि संस्थान ने लखीमपुर खीरी जिले मेें नेपाल बार्डर पर निघासन और पलिया क्षेत्र के दो-दो गांवों के 25-25 मुर्गीपालकों को कैरी श्यामा मुर्गी के चूजे दिए थे। बाद में संस्थान ने जब इन मुर्गीपालकों से इसकी प्रतिक्रिया ली तो पता चला कि इन चूजों से तैयार मुर्गी की 1000 से 1200 रुपये तक की बिक्री की गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि संस्थान से इस प्रजाति के अंडे 18 और चूूजे 25 रुपये में खरीदे जा सकते हैं। सीएआरआई ने कैरी श्यामा प्रजाति को विकसित करने के बाद राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) को इसके नाम से पंजीकरण कराने के लिए आवेदन कर दिया है। सीएआरआई के निर्देशक डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि इसका जल्द ही रजिस्ट्रेशन हो जाएगा।
संस्थान के वैैैज्ञानिकों ने डॉ. चंदहास की मदद से कैरी श्यामा मुर्गी की उन्नत प्रजाति को शोध तक तैयार किया है। इससे मुर्गीपालकों को काफी फायदा मिलेगा। -डॉ. संजीव कुमार, निदेशक, सीएआरआई



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